भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खाली गिलास / लुइस ग्लुक / श्रीविलास सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने माँगा अधिक, मुझे मिला अधिक।
मैंने माँगा अधिक, मुझे मिला थोड़ा, मुझे मिला बस कुछ नहीं से थोड़ा सा अधिक।

और बीच में? कुछ छाते खुल गए घरों के भीतर।
जूतों की एक जोड़ी, गलती से रसोई की मेज के ऊपर।

गलती, गलती यह तो मेरा स्वभाव था। मैं थी कठोर हृदय, पहुँच से दूर। मैं थी
स्वार्थी, निरंकुशता की हद तक जड़।

मगर मैं ऐसी ही थी हमेशा से, अपने शुरुआती बचपन में भी।
छोटी, काले बालों वाली, डरते थे जिससे दूसरे बच्चे।
मैं बदली नहीं कभी। गिलास के भीतर
समृद्धि का अव्यक्त ज्वार उलट गया
रातों रात ऊपर से नीचे की ओर।

क्या यह था समुद्र? प्रत्युत्तर देता आसमानी शक्ति को, संभव है? रहने को
सुरक्षित, मैंने प्रार्थना की। कोशिश की बनने हेतु बेहतर मनुष्य।
जल्दी ही लगा ऐसा मुझे कि जो हुआ था शुरू आतंक की भाँति
और परिपक्व हुआ नैतिक आत्ममोह में
वास्तव में हो सकता था
वास्तविक मानव विकास। संभव है
यही रही हो मंशा मेरे मित्रों की, पकड़ कर मेरा हाथ,
कहते मुझसे वे समझते थे
वह दुर्गति, वह अविश्वसनीय कचरा जो मैंने स्वीकार किया था, निष्कर्षतः (जैसा मैं एक समय सोचती थी) मैं थी थोड़ी दुःखी
देने में इतना कुछ इतने थोड़े के लिए।
जब कि उनका मतलब था कि मै अच्छी थी (कस कर पकड़े हुए मेरा हाथ)
एक अच्छी मित्र और व्यक्ति, न कि एक जीव करुणामय।

मैं नहीं थी दयनीय! मैं स्पष्ट थी , एक रानी अथवा संत की भाँति।

ठीक, यह सब ठीक है रसदार कपोल कल्पना हेतु।
और ऐसा लगता है मुझे कि महत्वपूर्ण है विश्वास करना
प्रयत्नों में, विश्वास करना कि कुछ अच्छा होगा केवल कोशिश मात्र से,
अच्छाई, पूर्णतः अप्रभावित भ्रष्ट शुरुआती आवेग से
प्रभावित करने अथवा ललचाने हेतु--

हम क्या हैं इस के बिना?
जूतों और सीढ़ियों के दुःखद करतब,
नमक से करतब, अपवित्रता से अभिप्रेरित बारंबार
कोशिश करते चरित्र निर्माण का।
क्या है हमारे पास खुश करने हेतु महान शक्तियों को?

और मैं सोचती हूँ आखिर में यही था वह प्रश्न
जिसने विनष्ट किया एगमेमन को, वहाँ समुद्र तट पर,
तैयार थे यूनानी जहाज, अदृश्य समुद्र में सुहाने बंदरगाह से दूर,
जानलेवा भविष्य, अस्थिर: वह था मूर्ख, सोचता हुआ कि यह हो सकता था नियंत्रित। उसे कहना चाहिए था
कुछ नहीं है मेरे पास। मैं हूँ तुम्हारी दया पर निर्भर।