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खाली घरौंदा/ भावना कुँअर
Kavita Kosh से
मेरा सहारा
पुरानी एलबम
जिसमें कैद
वो सुनहरी यादें
खो जाती हूँ मैं
बीते हुए पलों में
कैसे बनाया
हमने ये घरौंदा
आए उसमें
दो नन्हे-नन्हे पाँव
बढ़ते गए
ज्यों -ज्यों था वक़्त बढ़ा
पर फिर भी
नाज़ुक बहुत थे
उनके पंख
लेकिन फिर भी वो
बेख़ौफ होके
भर गए उड़ान
ढूँढते हैं वो
जाने अब वहाँ क्या
उस फैले से
खुले से आसमान।
राह तकता
रह गया ये मेरा
बेबस बड़ा
पुराना -सा घरौंदा
खाली औ सुनसान।