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खाली पेट हृदय में / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

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खाली पेट
हृदय में ज्वाला,
सपनों ने पल-पल छल डाला,
घुटनों के बल
चलने पर भी
नहीं पेट को मिला निवाला ।

पन टूटा पर आस न टूटी
थमी कटोरी हाथ न छूटी
सूखे तरूवर से फिर कोई
नयी नवेली शाख न फूटी

बाट जोहते
काले घन की,
जीवन का पिट गया दिवाला
घुटनों के बल
चलने पर भी
नहीं पेट को मिला निवाला।

बीत गए दिन रीते-रीते
फटी चदरिया सीते-सीते
चुटकी-चुटकी मिले दर्द को
शाम सबेरे पीते-पीते
 
आँखे रोती रहीं
उमर भर
लगा रहा होठों पर ताला,
घुटनों के बल
चलने पर भी
नहीं पेट को मिला निवाला ।

मणि माणिक से वमक रहे जो
वे पत्थर के टुकडे़ निकले
खाली हाथ दिखाए दोनो
गंगा जल देने के बदले

साँपों के संग
खेल-खेल कर
मैने अपना जीवन पाला
घुटनों के बल
चलने पर भी
नहीं पेट को मिला निवाला ।