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खाली हाथों में / ज्योत्स्ना शर्मा

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91
यूँ न लुटाना,
धीरज से सीपी में
मोती छुपाना।
92
यादों के मेले
सजाता रहे मन
कहाँ अकेले?
93
कैसा मंजर!
अपनों के हाथों में
मिले खंजर!
94
खाली हाथों में
तन्हाई की लकीर
क्या तकदीर!
95
तुम मुस्काओ,
जले दीप मन के
आओ न आओ!
96
दे गए पीर
चाहत के बदले
बातों के तीर!
97
स्वीकार करूँ
तुम्हारा दिया सब
भला क्यों डरूँ?
98
राज खोलेगी
बेचैन धड़कन
चुप्पी बोलेगी!
99
पन्नों पर गर्द
किस्मत बेदर्दी ने
लिखा था दर्द!
100
सज़दा किया
तेरे दर, न कोई
शिकवा किया!