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खाल की आड़ में / अरविन्द कुमार खेड़े
Kavita Kosh से
मैं जब शेर के साथ होता हूँ
शेर की खाल ओढ़ लेता हूँ
जब भेड़ियों के साथ होता हूँ
ओढ़ लेता हूँ भेड़ियों की खाल
मजे की बात यह है कि
मैं खाल ओढ़कर
अपना वजूद बचाता
गायब हो जाता हूँ
इधर दिखा देती है करतब
दिखा देती है कमाल
खाल ही
शायद यही वजह है
कि खाल की आढ में छिपा चेहरा
आज तक बेनकाब नहीं हुआ है।