भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खा-म-खा आँख / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ई धरा राम केॅ अली के भी
तीन कॅे तीस तों लिखाबोॅ नय।

भूख ईमान केॅ हिलाबै तॅे
देष के आबरू बिकाबोॅ नय।

देह के खून सब बहै तॅ-बहै
ई तिरंगा कभी झुकाबोॅ नय।

भूख ईमान केॅ हिलाबै तॅे
देष के आबरू बिकाबोॅ नय।

देह के खून सब बहै तॅ-बहै
ई तिरंगा कभी झुकाबोॅ नय।