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खा जाओ दीमको! / असंगघोष
Kavita Kosh से
दीमको!
चाट क्यों नहीं जातीं
मनुस्मृति
पचा क्यों नहीं जातीं
अन्याय की प्रतीक
रामायण
खा क्यों नहीं जातीं
वेद-पुराण
क्यों नहीं
छेद देतीं तुम
उनकी खोपड़ी
जहाँ सिर्फ
और सिर्फ
कुटिलता भरी पड़ी है।