खिड़कियाँ खोल दो / हरिवंश प्रभात

खिड़कियाँ खोल दो, रोशनी आने दो,
बेटियाँ पुष्प हैं, उनको मुस्काने दो।

पाप हिंसा है, इससे डरो साथियो,
झूठे वहमों में तुम ना पड़ो साथियो,
खुद को मानव से दानव न बन जाने दो।

बेटा, बेटी में रखना नहीं फर्क तू,
बेटी की ज़िंदगी ना करो गर्क तू,
जग में उनको बराबर का हक पाने दो।

नारी सबला ना, कमजोर समझो इसे,
दुनिया इनसे ही चलती है समझो इसे,
खतरा समझो न पौधा उखड़ जाने दो।

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