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खिड़की की धूप / प्रेरणा सारवान
Kavita Kosh से
खिड़की की धूप की तरह
तुम मेरी ज़िन्दगी में
आते हो
मैं छूने को
हाथ बढ़ाती हूँ
और तुम
साबुन के
बुलबुले की तरह
उड़ जाते हो
मैं सोचती हूँ
तुम्हारे पीछे _ पीछे
चुपके से आऊँ
मगर तुम हो कि
किसी भी लहर के साथ
तिनके की तरह बहकर
आगे निकल जाते हो
तुम्हारी चाह में
भटकती रहूँगी मैं
कहाँ - कहाँ
तुम यह क्यों
भूल जाते हो