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खिड़की भर धूप और मैं / ऋचा दीपक कर्पे
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					काले घने अंधेरे
उलझन सिकुड़न
आपाधापी...
उबाऊ -सा जीवन
वही आज वही कल
एक ही सा हर पल
वही दिन वही रात
वही खामोशी वही बात
ऐसे में, 
एक कतरा धूप का आता है
सुकून दे जाता है... 
आँखों में उतर जाता है
लगता है, 
दुनिया रुक गई है..! 
न कोई भीड़ है न शोर है.. 
बस एक खामोशी चारों ओर है.. 
दूर-दूर तक कोई नहीं.. 
इस दुनिया में 
यदि कुछ है तो बस.. 
खिड़की भर धूप और मैं...
	
	