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खिड़की / जितेन्द्र सोनी
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खिड़की से दिखता है तुम्हें
इस पार
तुम खुश हो
भूलकर
खिड़की तो होती है
सदा किसी दीवार में
क्या बेहतर नहीं है
खिड़की बनाने
या बड़ा करने में
बहाए गए
सदियों के पसीने को
अगर बहा दिया जाता
दीवार ढहाने में ?