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खिलते रहे गुलाब ये हम खाद बन चले / उर्मिल सत्यभूषण

खिलते रहे गुलाब ये हम खाद बन चले
उनकी खुशी के वास्ते अवसाद बन चले

प्रवाह यह रुके नहीं, बहती रहे नदी
हम सरित के कूल पर ही गाद बन चले

सुरभि बिखेरते सदा खिलते रहें कमल
हम पंकजों के पंक की फरियाद बन चले

इतिहास भूमिका भले इसकी नकार दे
हम इन्कलाबी गीतों का उन्माद बन चले

चूमा करे गगन जो सदियों इसी तरह
उर्मिल, इमारत के लिये बुनियाद बन चले।