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खिलने लगी हैं देखिये कलियाँ गुलाब की / रंजना वर्मा

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खिलने लगी हैं देखिये कलियाँ गुलाब की
खुशबू है जैसे है खुली बोतल शराब की

नजरों में तेरी नूर यूँ कुछ बेमिसाल है
शरमा रही हो जैसे किरन आफ़ताब की

तू कब मिलेगा आ के गगन पूछती धरा
है मुन्तज़िर वो आज भी तेरे जवाब की

उल्फ़त में तेरी दिल हुआ दीवाना है मेरा
दूँ क्या मिसाल साँवरे तेरे शवाब की

ग्वाला है तू गंवार यशोदा का दुलारा
छवि ऐसी है कि जैसे हो सूरत नवाब की

भटकी है चाँदनी तलाश में गली गली
ढूंढ़े मगर मिली न खबर माहताब की

दर्शन की तेरे प्यास सताती है रात दिन
बुझ जायगी मिलेगी जो इक बूँद आब की