भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खिलाड़ी / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
कुछ अलग सा होता है
एक बड़े खिलाड़ी का खेल
मारता है वह गेंद
अपनी पूरी ताकत से
जैसे कोई विस्फोट हुआ हो
लेकिन निशाना निर्धारित करती है आँख
और इस गेंद को देखो
आकाश और जमीन के बीच उड़ती हुई
इसमें खिलाड़ी की आँख भी है
पाँव भी है
और मजबूत इरादा भी,
गिरती है यह जब गोल पोस्ट के भीतर
वाह-वाह होती है कितनी
जबकि एक नये खिलाड़ी के पास
न तो वो आँख और न ही वो पाँव
इरादा भी गिरा हुआ
इसलिए झूमती है उसकी गेंद
बच्चे की तरह इधर-उधर।