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खिला हुआ है शफ़क़ की मिसाल फिर कोई / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

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 खिला हुआ है शफ़क़ की मिसाल फिर कोई
दिखा रहा है बहारे-जमाल फिर कोई

नहा के बांध रहा है वो बाल फिर कोई
बना हुआ है अछूता ख़याल फिर कोई
 
मेरे ख़याल की दुन्या में आ के चुपके से
छिड़क गया है फ़ज़ा में गुलाल फिर कोई

न मिल सकेगा कोई हम सा चाहने वाला
न ला सकोगे हमारी मिसाल फिर कोई

लजा लजा सी गई है फ़ज़ा दुआलम की
निहारता है ख़ुद अपना जमाल फिर कोई

जो हौसला है तो फिर बढ़ के हाथ फैला दे
वो देख बांट रहा है मलाल फिर कोई

ज़मीन कांप उठी आस्मां है सक्ते में
सुना रहा है मुसीबत का हाल फिर कोई

पलट दिया है किसी ने बिसाते-आलम को
वो चल गया है क़ियामत की चाल फिर कोई
 
मेरे वतन मेरे हिन्दोस्तां उदास न हो
मिलेगा लाल बहादुर सा लाल फिर कोई

किसी के हुस्ने-दिलारा को देख कर 'रहबर`
मचल रहा है लबों पर सवाल फिर कोई