भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खिलौना / अरुण देव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धरती पर उसके आगमन की अनुगूँज थी
व्यस्क संसार में बच्चे की आहट से
उठ बैठा कब का सोया बच्चा
और अब वहाँ एक गेंद थी
एक ऊँट थोडा सा ऊट-प-टांग
बाघ भी अपने अरूप पर मुस्कराए बिना न रह सका

पहले खिलौने की ख़ुशी में
धरती गेंद की तरह हल्की होकर लद गई
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से मिली मिट्टी की गाड़ी पर

जिसे तब से खींचे ले जा रहा है वह शिशु