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खींचता हूँ आखिरी कश ! / अरविन्द श्रीवास्तव

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तुम रहस्य की परतें खोलो
मैं सुलगाता हूँ बीड़ी

किवाड़ सारे बंद पड़े हैं
भोर होना उर्वर संकेत है
लपट पश्चिम से उठी है पेट की
टोह में हैं तस्कर सारे

अंतरियाँ जनमती हैं इच्छाएँ

भारी-भड़कम साम्राज्य का स्वामी
इस अनंत में अकेला है
आत्मा के बगैर
वह पिछले कई दिनों से बीमार चल रहा है
वह गाता है दर्दीले गीत

पूरब के बाज़ार आत्माओं से भरे पटे हैं
जब कभी झाड़ता है बूढ़ा कवि टाइपराइटर
आहट होती है ब्रह्मांड में

मैं खींचता हूँ आखिरी कश
बीड़ी समाप्त होने को है !