भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खुदा जाने कहाँ है 'असग़र'-ए-दीवाना बरसों से/ असग़र गोण्डवी
Kavita Kosh से
खुदा जाने कहाँ है 'असग़र'-ए- दीवाना बरसों से
कि उस को ढूँढते हैं काबा-ओ-बुतखाना बरसों से
तड़पना है न जलना है न जलकर ख़ाक होना है
ये क्यों सोई हुई है फ़ितरत-ए-परवाना बरसों से
कोई ऐसा नहीं यारब कि जो इस दर्द को समझे
नहीं मालूम क्यों ख़ामोश है दीवाना बरसों से
हसीनों पर न रंग आया न फूलों में बहार आई
नहीं आया जो लब पर नग़मा-ए-मस्ताना बरसों से