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खुदा फिर कभी दिन न ऐसा दिखाये / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
खुदा फिर कभी दिन न ऐसा दिखाये ।
तेरी आँखों में अश्क जो झिलमिलाये।।
जमाने की बातों की परवाह क्यों हो
मगर कोई अपना न दिल को दुखाये।।
बहुत दिन गुजारे हैं गुरबत में हमने
तभी गैर अपनों को पहचान पाये।।
खुशी अब न होती है मेहमान दिल की
लबों को बहुत दिन हुए मुस्कुराये।।
अंधेरी पड़ी जिंदगी की इमारत
बुझी जो शमा कोई आकर जलाये।।
दिया डाल देगा डेरा है तनहाइयों ने
अकेले में क्या अब कोई गुनगुनाये।।
चलो वक्त कुछ साथ अपने गुजारे
जमाना हुआ खुद से नजरें मिलाये।।