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खुद को मिटाती चली गई / रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
तेरे प्यार में मैं खुद को मिटाती चली गई।
दस्तूर-ए-दुनिया के निभाती चली गई॥
चारो तरफ रिवाज़ों की भीड़ है खड़ी,
रस्में-वफ़ा मैं फिर भी निभाती चली गई।
तेरे प्यार में मैं खुद को मिटाती चली गई॥
चाहत में तेरी खुद को मिटा डाला है मैंने,
तेरे लिए हर ग़म को उठाती चली गई।
तेरे प्यार में मैं खुद को मिटाती चली गई॥
जब भी मेरे दिल ने तुझे याद किया है,
मैं आँसुओं में खुद को डुबाती चली गई।
तेरे प्यार में मैं खुद को मिटाती चली गई॥
तेरे बिना यह ज़िन्दगी बेज़ान हुई है,
हर साँस का मैं बोझ उठाती चली गई।
तेरे प्यार में मैं खुद को मिटाती चली गई॥
दीवानगी है दिल की यह,दिल्लगी नहीं,
दीवानगी,जो होश उड़ाती चली गई।
तेरे प्यार में मैं खुद को मिटाती चली गई॥