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खुद पे गुज़रे अज़ाब लिखती हूँ / सुमन ढींगरा दुग्गल

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खुद पर गुज़रे अज़ाब लिखती हूँ
आज कर के हिसाब लिखती हूँ

बहर ए दिल में है इक सन्नाटा
और मैं इज़्तिराब लिखती हूँ

खुद को ज़र्रे से मुख़्तसर कर के
आप को आफ़ताब लिखती हूँ

जब कोई फूल मुस्कुराता है
उस को अपना शबाब लिखती हूँ

नाज़ कर कर के आज कल खुद को
आपका इंतिख़ाब लिखती हूँ

मेरी अच्छाई की सनद ये है
खुद को सबसे ख़राब लिखती हूँ

उन को कोई सुमन लिखे कुछ भी
मैं ख़ुदा की किताब लिखती हूँ