भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खुद ब खुद / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
					
										
					
					कल रात मेरे दिल का वह कोना 
जो अक्सर खाली रहता है 
अचानक तुम्हारी याद में 
लबालब भर गया 
फिर नींद नहीं आयी 
जब आँखे बंद हुई तो 
रात भर सपने में 
तुम आते जाते रहे 
सुबह उठा तो 
तुम्हारे बदन की खुशबू 
मेरे चारो और महक रही थी 
ये मेरा दिल 
ये मेरा मन 
कितना कुछ सोच लेता है 
खुद ब ख़ुद
 
	
	

