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खुद रो कागद खुद बांचतां / सांवर दइया
Kavita Kosh से
गुलाबी कागद माथै
रातै रंग लिखी ऐ ओळियां
मन राखै रातो रात-रात भर
डाक में घाल
फेरूं बांचण रो सुख
क्यूं गमावूं
म्हारै कनै
म्हारो धन
फिर-फिर बांचूं म्हैं
म्हारी ओळियां
अरथावूं अर लाजां मरूं
हाय राम !
म्हैं इत्ती लाजबायरी…
इत्ती नागी-उघाड़ी…