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खुद से रूठते हुए / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
हमने प्यार किया
और पहचाने गए
नफरत की
और मारे गए
अपने को छोड़ कर जहाँ-जहाँ भी गए
खदेड़ दिये गए
हमने जो कुछ भी किया
संसार पर आँख धर कर किया
चुल्लू भर जिया
समुद्र भर खोया
शुक्र मनाते-मनाते रात आई
वह भी बिना कोई चिह्न छोड़
लौट गयी
सुबह अब आती नहीं
दोपहर का पहले भी कभी कोई ठिकाना नहीं था
महज इशारा भर था
हमारा जीवन और उस पर भी
हमें एक खड़ी बंजर भूमि पर जबरन रो़प दिया गया
ये सीधा-सीधा तरीका था
हमें उलट देने का
अपनी कहानी हमें
अपनी जुबानी ही सुनानी थी
पर
हम पस्त
दौड़ में हारे खिलाड़ी से
खुद से ही रूठे हुए