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खुरचन / प्रतिभा किरण
Kavita Kosh से
लड़कियाँ जिन्होंने लिखनी चाही कविताएँ
जिनके हाथों में कलम-किताब के बजाय
थमा दिया गया झाड़ू और पोछा का कपड़ा
उन्होंने शब्दों में उकेरी सबसे ज्यादा वास्तविकतायें
छी: छी:, एह्हें, कपड़े की तह किसने बिगाड़ी
कलमुहा कहीं का, धत्त तेरी की
लड़कियाँ जिनके हिस्से में आयीं कलम-किताब और आघातें
लिख डाला भर-भर के पन्ना अपना दु:ख
लड़कियाँ जिनके हिस्से में आयीं
केवल आघातें और झाड़ू-पोछा
छौंक दिया दाल जीरा, मिर्च, लहसुन और क्रोध से
पटक दिया एक दिन जमीन पर दाल का बर्तन
सुना दिया महरी को खरी-खोटी
लड़कियों ने उस दिन जले दाल के बर्तन में
महरी को कविता खुरच के दिखाई