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खुली आंख से देखा जिनको / छाया त्रिपाठी ओझा
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खुली आंख से देखा जिनको
उन सपनों ने ठगा मुझे।
पथ पर फूल बिछाने थे कुछ
तोड़ सितारे लाने थे कुछ
कभी रचे जो तुम्हें सोचकर
वो नवगीत सुनाने थे कुछ
किन्तु बेड़ियां हैं पांवों में
दिया समय ने दगा मुझे।
खुली आंख से देखा जिनको
उन सपनों ने ठगा मुझे।
देख मुझे सब मुंह बिचकाते
अपने सारे रिश्ते नाते
जब-जब दीप जलाती हूं मैं
कर्म-भाग्य मिल सभी बुझाते
सदा उजालों ने भी समझा
अंधियारों का सगा मुझे।
खुली आंख से देखा जिनको
उन सपनों ने ठगा मुझे।
दुख खुशियों के पल हरता है
समय नमन में जल भरता है
मांग रही बस उत्तर दुनिया
प्रश्न कौन कब हल करता है
इसी भीड़ में शामिल तुम भी
अक्सर ऐसा लगा मुझे।
खुली आंख से देखा जिनको
उन सपनों ने ठगा मुझे।