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खुली या बंद हों आँखें दिखाई देता है / ब्रह्मदेव शर्मा

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खुली या बंद हों आँखें दिखाई देता है।
उसी का नाद है वह ही सुनाई देता है॥

समा चुका है हमारी हरेक सांसों में,
वही तो धड़कनों में भी सुझाई देता है।

गिरा सको तो गिरा दो दिवार नफरत की,
बुरा हो सोच तो केवल बुराई देता है।

उगा सको तो उगालो यहाँ मुहब्बत को,
भला-सा शख़्स ही सबको भलाई देता है।

तमस की सोच का कुछ भी बुरा नहीं लगता,
कि साया साये में सिमटा दिखाई देता है।