भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खुल के आओ तो कोई बात बने / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


खुलके आओ तो कोई बात बने
रुख़ मिलाओ तो कोई बात बने

हमने माना कि प्यार है हमसे
मुँह पे लाओ तो कोई बात बने

बात क्या राह में बनेगी भला!
घर पे आओ तो कोई बात बने

रात गीतों की और ऐसे तार!
सुर मिलाओ तो कोई बात बने

यों तो बातें बना रहे हैं गुलाब
तुम बनाओ तो कोई बात बने