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खुशफ़ह्मी-ए'-हुनर ने सँभलने नहीं दिया / दरवेश भारती
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खुशफ़ह्मी-ए'-हुनर ने सँभलने नहीं दिया
मुझको मेरी अना ही ने फलने नहीं दिया
चाहा नये-से रीति-रिवाजों में मैँ ढलूँ
लेकिन रिवायतों ने ही ढलने नहीं दिया
एक-एक शय बदलती गयी मेरे आस-पास
हालात ने मुझे ही बदलने नहीं दिया
चलना था साथ-साथ हमें उम्र-भर, मगर
नापायदार उम्र ने चलने नहीं दिया
दिल मयकदे की सिम्त चला था, मगर उसे
इस रास्ते पे अक़्ल ने चलने नहीं दिया
अंजाम आर्ज़ू का बुरा है , बस इसलिए
दिल में कभी चिराग़ ये जलने नहीं दिया
'दरवेश' बेक़रार रहा दिल तमाम उम्र
मौक़ा सुकूं का एक भी पल ने नहीं दिया