खुशबू से जो नाता (माहिया) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

87
तुमको मन आँगन दूँ
छोड़ नहीं जाना
निर्मल तन दर्पन दूँ।
88
यह चन्दन- सी काया
साँसें भी महकी
जब तुझको था पाया।
89
अब तो तुम आ जाओ
साँसें हैं व्याकुल
जीवन बन छा जाओ।
-0-
(27 जुलाई 20)
90
तुम हो खुशबू मन की
तुमसे जीवन है
साँसें तुम हो तन की।
91
कितना है दर्द सहा!
जीवन में तुमने
फिर भी तो उफ़ न कहा।
92
दो पल तुमको देखा
घोर घनी रजनी
चमकी चपला रेखा।
93
नयनों में दर्द दिखा
लब पर दर्द वही
आकर के आज टिका।
94
खुशबू से जो नाता
वह तुमको छूकर
मुझ तक फिर आता।
95
वे लोग न मानेंगे
प्यार किसे कहते
हरगिज़ ना जानेंगे
96
बोझिल तेरे नैना
मैं जागूँ यूँ ही
बीतेगी ये रैना।
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