भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खुशियाँ कम आयीं हिस्से में दुख ही अधिक सहे / अमन चाँदपुरी
Kavita Kosh से
खुशियाँ कम आयीं हिस्से में दुख ही अधिक सहे
अजब दौर है शीश झुकाकर यहाँ पड़े चलना
हम बंजारे, सीधे-सादे क्या जानें छलना
मन घंटों रोया, तब जाकर थोड़े अश्रु बहे
हमने केवल उन राहों पर छोड़े हैं पदछाप
भुगत रहीं थीं, जो सदियों से ऋषि-मुनियों के शाप
विष ही पिया उम्र भर हमने लेकिन कौन कहे
दो रोटी की चिंता में ही जीवन बीत गया
लगता है सुख का घट धीरे-धीरे रीत गया
आशा की दरकीं दीवारें, सपने सभी ढहे