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खुशियाँ मनाते क्यों नहीं / प्रेमलता त्रिपाठी
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साथी हमारे साथ मिल खुशियाँ मनाते क्यों नहीं?
मन फागुनी में आज फिर सबको डुबाते क्यों नहीं?
है रंग जीवन के बहुत नव गीत से लें नित सजा,
आया वही मौसम दिखे उसको सजाते क्यों नहीं?
जो प्रीति भावों में मिले उससे बड़ी क्या संपदा,
सागर नदी संगम बने मिलकर बहाते क्यों नहीं?
भरदें सुगम संगीत से जीवन बसेरा चार दिन,
संग्राम करते पथ सदा बाधा मिटाते क्यों नहीं?
श्वांसें हमारी सींचती सद कर्म देते साथ तब,
श्रम सीकरों की बूंद से हम भी नहाते क्यों नहीं?
सोपान से गिरता तभी चढ़ना वही जो जानता,
साहस सरस उठते कदम आगे बढ़ाते क्यों नहीं?
जो प्रेम भावों में मिले उससे बड़ी क्या संपदा,
सागर नदी संगम बनें मिलकर बहाते क्यों नहीं?