भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खुशियाँ मनाने से / संजय चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
भूख थोड़ा कम लगती है
नग्नता धरोहर बन जाती है संस्कृति की
खूब बिकती है भीतर की लाचारी
बाहर की दुकान पर
नाचने से शरीर की हड्डियाँ नहीं दिखाई पड़तीं
नाच हर आदमी को अच्छा लगता है
बात थोड़ा कम कहने में ही
कविता रहती है
इस तरह का ऐलान है शायद।