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खुशियाँ / कल्पना लालजी
Kavita Kosh से
शब्द बहुत छोटा है अर्थ बड़ा व् गूढ़
दुनिया खोजे इसको पर आँखों से दूर
है क्या यह कहाँ मिलती है
क्या है इसकी कीमत
नहीं जान सका है कोई
परिधि नहीं है सीमित
कभी हाथ लग जाती है
बिन खोजे बिन आस
कभी जीवन निकल जाता है
विफल सभी प्रयास
हम दौड़े इसके पीछे
ये दौड़े आगे- आगे
मृगमरीचिका मरुभूमि की
जग सोये कभी न् जागे
द्वार ह्रदय के बंद किये
हम रहे खोजते जिसको
हम क्या साधू सन्यासी भी
पा न् सके हैं उसको
छोटा सा इक मंत्र बताऊँ
सुन लो धर के ध्यान
जीवन फिर बदल जाएगा
रंग बिरंगा हो जाएगा
न् भागो इसके आगे
न् भागो इसके पीछे
स्वयं मित्र बन जाएगा
पीछे-पीछे चला आयेगा
सराबोर तुम्हें कर जाएगा