खुशियों की सौगात / सत्यवान सौरभ
पाई-पाई जोड़ता, पिता यहाँ दिन रात!
देता हैं औलाद को, खुशियों की सौगात!
माँ बच्चो की पीर को, समझे अपनी पीर!
सिर्फ इसी के पास है, ऐसी ये तासीर!
भाई से छोटे सभी, सोना-मोती-सीप!
दुनिया जब मुँह मोड़ती, होता यही समीप!
बहना मूरत प्यार की, मांगे ये वरदान!
भाई को यश-बल मिले, लोग करे गुणगान!
पत्नी से मिलता सदा, फूलों-सा मकरंद!
तन-मन की पीड़ा हरे, रचें प्यार के छंद!
सच्चा सुख संतान का, कौन सका है तोल!
नटखट-सी किलकारियाँ, लगती है अनमोल!
जीजा-साली में रही, बरसों से तकरार!
रहती भरी मिठास से, साली की मनुहार!
मन को लगती राजसी, सालों से ससुराल!
हाल-चाल सब पूछते, रखते हरदम ख्याल!
सास-ससुर के रूप में, मिलते हैं माँ बाप!
पाकर इनको धन्य है, जीवन अपने आप!
जीवन में इक मित्र का, होता नहीं विकल्प!
मंजिल पाने के लिए, देता जो संकल्प!
धन-दौलत से दूर हो, चुनना वह जागीर!
जिन्दा रिश्ते हो जहाँ, हो सच्ची नाज़ीर!