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खुशी झूमती आशियाँ तक न आयी / कैलाश झा 'किंकर'
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खुशी झूमती आशियाँ तक न आयी
कभी बात मेरी जुबां तक न आयी।
बहन लौटकर जा चुकी माँ से मिल कर
बगल में हूँ फिर भी यहाँ तक न आयी।
पुकारा था उसने मदद को यकीनन
सदा ही मेरे कारवां तक न आयी।
दिलों में वही एक रहता है हरदम
कभी शान जिसकी गुमां तक न आयी।
अदब की ये दुनिया है जन्नत की दुनिया
न कहना ग़ज़ल कह-कशाँ तक न आयी।