खुशी न पाओगे तुम कभी भी यूँ मेरी दुनियाँ को अब मिटा के
अगर तसल्ली मिले तो देखो वफ़ा ये मेरी भी आज़मा के
बहुत दिनों तक रहे तड़पते मगर न पायी खबर तुम्हारी
बिगड़ न जाता तुम्हारा कुछ भी अगरचे जाते मुझे बता के
न भूल जाना किया जो वादा न दूर जाना जहाँ से मेरे
तुम्हारे कानों में गूँजते ही रहेंगे स्वर ये मेरी सदा के
कभी मेरे दिल में आ के देखो दिखेगी तुमको तुम्हारी सूरत
मैं आइना हूँ तुम्हारे दिल का निहारो चेहरा मुझे उठा के
रहें मुसलसल सदा बहारें हुआ नहीं ये कभी जहाँ में
खिज़ा हमेशा नया बनाती शज़र के पत्तों को यूँ गिरा के
वतन हमेशा रहा लुटाता सदा नियामत के फूल हम पे
इसी के कारण ही जी रहे हैं ज़माने में सिर अपना यूँ उठा के
न कोई मस्जिद न ही शिवाला बना कभी रब का आशियाना
अगर नहीं है यकीन तुम को कभी भी देखो उसे बुला के