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खुशी मेरे भी घर आई / कैलाश झा 'किंकर'

खुशी मेरे भी घर आई।
बजी थी ख़ूब शहनाई॥

अधूरी जो कहानी थी
अभी वह पूर्ण हो पाई।

निशाना साध कर मैंने
सफलता खींच कर लाई।

गरीबों से नहीं उलझें
करें नुक़सान-भरपाई।

शहादत दी थीं वीरों ने
तो आजादी की तरुणाई।

सभी से नेह है "किंकर"
सभी मेरे बहन-भाई।