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खुशी से द्वार पर दरबान की कीमत चुका करके / नन्दी लाल

खुशी से द्वार पर दरबान की कीमत चुका करके।
भरे दरबार में जाना तो जाना सर झुका करके।।

न छू जायें कहीं पर दूसरों के हाथ हाथों से
खड़े हो लाइनों में और थोड़ा फासला करके।

निपट पाई नहीं घर की लड़ाई आज तक जिनकी,
अभी आये है मालिक दूसरों का फैसला करके।।

हमारी एक श्रद्धा आस्था ने भक्ति ने मन से।
धरा पर पत्थरों को रख दिया है देवता करके।।

न आयेंगे हमें मालूम है उनकी अदाकारी,
वो आये हैं यहाँ इस बार भी उनको मना करके।।

भरोसा था यही फिर साथ दे देगा हमारा वह,
किसी ने रख दिये अरमान फिर अपने फना करके।।

मुहब्बत की हमारी और क्या कीमत लगायेंगे
चले जाओ अभी फिर लौट आना घर पता करके।।