Last modified on 23 अगस्त 2018, at 21:36

खुश्की का नाम तक नहीं रू-ए-ज़मीन पर / शहरयार

खुश्की का नाम तक नहीं रू-ए-ज़मीन पर
और लोग पूछते हैं कि बरसात कब हुई

ये शहर भी अजीब है चलता नहीं पता
किस वक़्त दिन ग़ुरूब हुआ रात कब हुई

किस सादगी से मुझको ये समझा रहे हैं सब
मेरे अदू की जीत मेरी मात कब हुई।

आदाबे-ज़िन्दगी पे हुई खुल के गुफ्तगू
मरने के मसअले पे कोई बात कब हुई।