खूनक होली (दिल्ली)/ आभा झा
फोंसरी के फोड़ि भोकन्नर कए
मनुजत्व खसौलक मुँहभ' रे
उन्माद पीज में चुभकि चुभकि
निकसल करैत
ओ अट्टहास,
विषदंत निपोड़ने कालनाग
फुफकार मारि माहुर उगलय
बनबय विषाक्त दिल्लीक वायु
देखिते-देखिते
मचि गेल कहर
गोली-बारूद
रोड़ा-पाथर
रेती-खंजर
धर-धर, धर-धर
कऽ अग्निवृष्टि
नाचय निकृष्ट
छल खेलि रहल खूनक होली
भरि भरि टोली
लह-लह करैत निज जिह्वा सँ
चट चाटि गेलै वाहन दोकान
कत निरपराध के लेलक जान।
निर्मम हत्या सुनि प्रियतम के
हा! कहरि रहल छथि नारि कते
अविरल बहैत छनि अश्रुधार
एकसरि सहती जीवनक भार।
निर्दोष मात्र मारल गेलाह
नहि दुष्ट दुराचारी मरलै।
की जड़य कुकूर कहियो, कखनो?
केहनो भीषण अगिलग्गी मे?
चलतै दोषारोपणक वाण
सभ देहझारि बनतै महान
अन्यान्यी, अत्याचारी दल
बनि भद्र घुमत एहिना कलवल
घुरि घर नहि अयलै लाल जकर
छाती पीटै छै माय तकर
हाकरोस करै छै भऽ अधीर
के हाय! हरत बुढ़ियाक पीड़।
कन्नारोहटि पुनि सुना रहल
क्यो अस्पताल में दम तोड़लक
चीत्कार उठल जोड़क केम्हरो
छै धधकि रहल आंचर ककरो!
पत्नीक पति
नेनाक बाप
मायक बेटा
के आनि देतै?