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खूब परब त्योहार मनाबऽ / राम सिंहासन सिंह

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खूब परब-त्योहार मनाबऽ
मन में भकती-भाव जगावऽ
नाचऽ गाबऽ गीत सुनाबऽ
ढोल-नगाड़ा खूब बजावऽ।
नइके-नइके पहनऽ कपड़ा
केकरो से पर करऽन झगड़ा।
आपस में सब प्रेम बढ़ाबऽ
हिल-मिल के सब रास नचावऽ।
परब आउ त्योहार यही हे
बढ़े प्रेम सदभाव सही हे।
यही बताबऽ हे ई अवसर
सभ्भे से हो प्यार परस्पर।
मन में तनिक कुभाव न लावऽ
मन के सगरो मैल मिटाबऽ।
घरे-घरे सनेस सुनाबऽ
सब अदमी से प्रेम बढ़ावऽ।
बैर-बुराई पर जय पाबऽ
अच्छा-सच्चा गुन अपनाबऽ
भाव जगावऽ मन से मनहर
भारत-भूमि बन जय तो सुन्नर
दुनिया भर फिर सीस नबयतो
जगत गुरु फिर ई बन जयतो।