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खूब वो मुझ में तलाशे खामियाँ / डी. एम. मिश्र

खूब वो मुझ में तलाशे खामियाँ
हम तो गाकर जायेंगे अच्छाइयाँ।

जानता हूँ कब्र खुदती है कहाँ
मैने चाहा ही नहीं ऊँचाइयाँ।

जब हमारी याद आयेगी तुम्हें
काटने लग जांयगी तनहाइयाँ।

फिर तो मंजिल दूर हो या पास हो
चल पड़े तो फिर कहाँ कठिनाइयाँ।

गर इरादे हों तुम्हारे नेक तो
मुझ में भी मिल जायँगी कुछ खूबियाँ।