खेतोॅ के आरी-आरी/ अनिरुद्ध प्रसाद विमल
खेतोॅ के आरी-आरी
चिकना के धारी-धारी
सरसों के क्यारी-क्यारी
गोड़ोॅ केॅ बारी-बारी
होलै-होलै पग धरि
बूलै सुकुमारी ।
सांझोॅ के बेरा छेलै
लाली किरण छेलै
माघी मतैली छेलै
होड़ा-होड़ी झूलै छेलै
ताहीं क्षण मारी देलकै
हवा सिसकारी ।
सुन्दरी लजाय गेलै
मनैं में रिझाय गेलै
अलबेली जे जीया छेलै
दाँतोॅ से दबाय गेलै
वही क्षण छहरी गेलै
गाछ लहारी ।
पियर फूल सरसों के
गोरी मुस्की गेलै
पातर-पातर पियवा के
यादोॅ में डूबी गेलै
ताही क्षण सांझे देलकै
जोरोॅ से हकारी।
धरती बौरेली छेलै
छमछम छमकै छेलै
टिहकोॅ पारी कोयल रानी
‘कहाँ-कहाँ’ बोलै छेलै
नाची के उमताय देलकै
गहुंम खेसारी ।
कुसुम रंग चूनर छेलै
नभ रंग धूसर छेलै
होठवा जे फड़की गेलै
कमर तनि लचकी गेलै
वही क्षण चली देलकै
पिया के दुलारी ।