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खेतोॅ में झूमै छै माघी के फूल / कुमार संभव

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खेतोॅ में झूमै छै माघी के फूल।
पाग फाग के माथा में बान्ही
पियर सरसों के धोती पिन्हीं,
मुग्धा बनी हम्में टुकटुक ताकौं
कखनूँ खिड़की, कखनूँ मोखा झाँकौं,
लागै छै पिया हमरे घूमै छै
हाथोॅ में लेनें हमरै पीत दुकूल,
खेतोॅ में झूमै छै माघी के फूल।

नील नवल नव चिकना रसवंती
सजलोॅ छै धारी में पंगति-पंगति,
पिया पाँव से करि-करि अठखेली
छमछम-छुमछुम नाचै अलबेली,
पुरबैया के झोंका में झरलै
क्यारी-क्यारी मुकुल
खेतोॅ में झूमै छै माघी के फूल।

बड्डी बौराहा सच्चे में ई वसंत छै
महिमा फागुन के आदि-अनंत छै,
अंचरा पकड़ी सद्योखिन करै झीकाझोरी
देहोॅ में लगाबै आगिन, करै बरजोरी,
चन्दन समझी लगाबै छी माथा में
पिय पथ के चंदनवर्णी पग-धूल,
खेतोॅ में झूमै छै माघी के फूल।