भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खेलकूद कन्हैया जी का (कालिय-दमन) / नज़ीर अकबराबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तारीफ़ करूं मैं अब क्या क्या उस मुरली अधर बजैया की।
नित सेवा कुंज फिरैया की और बन बन गऊ चरैया की॥
गोपाल बिहारी बनवारी दुख हरना मेहर करैया की॥
गिरधारी सुन्दर श्याम बरन और हलधर जू के भैया की॥
यह लीला है उस नंद ललन, मनमोहन जसुमत छैया की।
रख ध्यान सुनो डंडौत करो, जय बोलो किशन कन्हैया की॥1॥

एक रोज़ खु़शी से गेंद तड़ी की, मोहन जमुना तीर गए।
वां खेलन लागे हंस-हंस के, यह कहकर ग्वाल और बालन से॥
जो गेंद पड़े जा जमना में फिर जाकर लावे जो फेकें।
वह आपी अन्तरजामी थे क्या उनका भेद कोई पावे॥
यह लीला है उस नंद ललन, मनमोहन जसुमत छैया की।
रख ध्यान सुनो डंडौत करो, जय बोलो किशन कन्हैया की॥2॥

वां किशन मदन मनमोहन ने सब ग्वालन से यह बात कही।
और आपही से झट गेंद उठा उस काली दह में डाल दई॥
फिर आपही झट से कूद पड़े और जमुना जी में डुबकी ली।
सब ग्वाल सखा हैरान रहे, पर भेद न समझें एक रई॥
यह लीला है उस नंद ललन, मनमोहन जसुमत छैया की।
रख ध्यान सुनो डंडौत करो, जय बोलो किशन कन्हैया की॥3॥

यह बात सुनी ब्रज बासिन ने, तब घर घर इसकी धूम मची।
नंद और जसोदा आ पहुंचे, सुध भूल के अपने तन मन की॥
आ जमुना पर ग़ुल शोर हुआ और ठठ बंधे और भीड़ लगी।
कोई आंसू डाले हाथ मले, पर भेद न जाने कोई भी॥
यह लीला है उस नंद ललन, मनमोहन जसुमत छैया की।
रख ध्यान सुनो डंडौत करो, जय बोलो किशन कन्हैया की॥4॥

जिस दह में कूदे मन मोहन, वां आन छुपा था एक काली।
सर पांव से उनके आ लिपटा, उस दह के भीतर देखते ही॥
फन मारे कई और ज़ोर किये और पहरों तक वां कुश्ती की।
फुंकारे ली बल तेज किये, पर किशन रहे वां हंसते ही॥
यह लीला है उस नंद ललन, मनमोहन जसुमत छैया की।
रख ध्यान सुनो डंडौत करो, जय बोलो किशन कन्हैया की॥5॥

जब काली ने सो पेच किये फिर एक कला वां श्याम ने की।
इस तौर बढ़ाया तन अपना जो उसका निकसन लागा जी॥
फिर नाथ लिया उस काली को एक पल भर भी ना देर लगी।
वह हार गया और स्तुति की, हर नागिन भी फिर पांव पड़ी॥
यह लीला है उस नंद ललन, मनमोहन जसुमत छैया की।
रख ध्यान सुनो डंडौत करो, जय बोलो किशन कन्हैया की॥6॥

उस दह में सुन्दर श्याम बरन उस काली को जब नाथ चुके।
ले नाथ को उसकी हाथ अपने, हर फन के ऊपर निरत गए॥
कर अपने बस में काली को मुसकाने मुरली अधर धरे।
जब बाहर आये मनमोहन, सब खु़श हो जय जय बोल उठे॥
यह लीला है उस नंद ललन, मनमोहन जसुमत छैया की।
रख ध्यान सुनो डंडौत करो, जय बोलो किशन कन्हैया की॥7॥

थे जमुना पर उस वक़्त खड़े, वां जितने आकर नर नारी।
देख उनको सब खु़श हाल हुए, जब बाहर निकले बनवारी॥
दुख चिन्ता मन से दूर हुए आनन्द की आई फिर बारी।
सब दर्शन पाकर शाद हुए और बोले जय जय बलिहारी॥
यह लीला है उस नंद ललन, मनमोहन जसुमत छैया की।
रख ध्यान सुनो डंडौत करो, जय बोलो किशन कन्हैया की॥8॥

नंद ओर जसोदाा के मन में, सुध भूली बिसरी फिर आई।
सुख चैन हुए दुख भूल गए कुछ दान और पुन की ठहराई॥
सब ब्रज बासिन के हिरदै में आनन्द ख़ुशी उस दम छाई।
उस रोज़ उन्होंने यह भी ”नज़ीर“ एक लीला अपनी दिखलाई॥
यह लीला है उस नंद ललन, मनमोहन जसुमत छैया की।
रख ध्यान सुनो डंडौत करो, जय बोलो किशन कन्हैया की॥9॥

शब्दार्थ
<references/>