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खेला /राम शरण शर्मा 'मुंशी'
Kavita Kosh से
न चेला, न चेली
न धेला, न धेली
अकेला, अकेला, अकेला !
सुबक सुबह उठना,
पवन बन बिखरना,
डगर पर बिछलना,
किसी से उलझना,
किसी पर मचलना,
इसे रोक देना,
उसे चूम लेना,
सभी से लिपटकर
सभी से सँवरना
न कोई मुसीबत, न कोई झमेला,
अकेला अकेला अकेला !
चढ़ी दोपहर
ताप बन आप तपना
अटारी, गली, खेत,
चौपाल पर
बन पसीना पिघलना,
ताम्बा औ’ जस्ता