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खेलू खेलू कुमर पचीसी, बाली लगाय के / अंगिका लोकगीत
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♦ रचनाकार: अज्ञात
विवाह के समय दुलहे-दुलहिन के बीच पचीसी, पासा खेलने की विधि संपन्न की जाती हे। प्रस्तुत गीत में दुलहे के हारने और दुलहिन के जीतने का उल्लेख है। दुलहे को अपनी बहन हारने तथा उसका विवाह दुलहिन के भाई से करने का परिहास किया गया है।
खेलू खेलू कुमर पचीसी<ref>एक तरह की द्यूतक्रीड़ा</ref>, बाली लगाय के।
रामजी हारल सीता जीतल, अप्पन अम्माँ के राखू सजाय के॥1॥
खेलू खेलू कुमर पचीसी, बाजी लगाय के।
रामजी हारल सीता जीतल, अप्पन चाची के राखू सजाय के॥2॥
खेलू खेलू कुमर पचीसी, बाजी लगाय के।
रामजी हारल सीता जीतल, अप्पन बहिनी के राखू सजाय के।
हमर भैया के दिहु<ref>दीजिए; दो न</ref>, बिहाय<ref>विवाह</ref> के॥3॥
शब्दार्थ
<references/>