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खेल-खेल में / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
तुम्हारे हाथों में
समुद्र की रेत
अवकाश के क्षण थे
खेलते रहे
खेल-खेल में
रेत को घर कर दिया
चमक से बँध कर कभी
चूम लिया
शोर हुआ सहसा
सागर उमड़ा
भरी-भरी हथेलियाँ बहा दीं
दूर खड़े हो कर फिर भी
देखना भी नहीं चाहा
विसर्जित होते रेत-कणों को.