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खेल-खेल में / नरेन्द्र जैन
Kavita Kosh से
देख रहा हूँ मैदान
और
बच्चे दौड़ रहे हैं
और दौड़-दौड़ में एक दिन
बच्चे बड़े हो जाएंगे
सड़क पर
बाईं ओर
पैदल चलते-चलते
देखेंगे खेल का मैदान
कोई कहेगा
यह हमारा मैदान हुआ करता था
मैदान के बाहर
एक भविष्य है
मैदान म,एं एक बड़ी गेंद उछलती
जिसके पीछे भागते
अभी छोटे-छोटे पैर
मैदान के बाहर
ख़ून-पसीने के खेल हैं लगातार
चलते
ज़रा देखो एक बच्चा
दौड़ता तेज़ी से
मैदान से बाहर आ रहा है